अनमोल वचन

पुरुष से पिता का सफर

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पुरुष से पिता का सफर में प्रस्तुत आलेख को आप अंत तक पढ़िए जरुर

पत्नी जब स्वयं माँ बनने का समाचार सुनाये और वो खबर सुन,
आँखों से खुशी के आँसू टप-टप गिरने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

नर्स द्वारा कपड़े में लिपटा कुछ पाउण्ड का दिया जीव,
जवाबदारी का प्रचण्ड बोझ का अहसास कराये
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

रात-आधी रात, जागकर पत्नी के साथ, बेबी का डायपर बदलता है,
और बच्चे को कमर में उठा कर घूमता है,
उसे चुप कराता है, पत्नी को कहता है तू सो जा मैं इसे सुला दूँगा।
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

मित्रों के साथ घूमना, पार्टी करना जब नीरस लगने लगे और
पैर घर की तरफ बरबस दौड़ लगाये
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

“हमने कभी लाईन में खड़ा होना नहीं सीखा” कह, ब्लैक में टिकट लेने वाला,
बच्चे के स्कूल में दाखिले का फॉर्म लेने हेतु पूरी ईमानदारी से सुबह 4 बजे से लाईन में खड़ा होने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

पिता का सफर

जिसे सुबह उठाते साक्षात कुम्भकरण की याद आती हो
और वो जब रात को बार बार उठ कर ये देखने लगे कि मेरा हाथ या पैर कहीं
बच्चे के ऊपर तो नहीं आ गया एवम् सोने में पूरी सावधानी रखने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

असलियत में एक ही थप्पड़ से सामने वाले को चारो खाने चित करने वाला,
जब बच्चे के साथ झूठ-मूठ की लड़ाई में बच्चे की नाजुक थप्पड़ से जमीन पर गिरने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

खुद भले ही कम पढ़ा या अनपढ़ हो, काम से घर आकर बच्चों को
“पढ़ाई बराबर करना, होमवर्क पूरा किया या नहीं”
बड़ी ही गंभीरता से कहे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

खुद ही की कल की मेहनत पर ऐश करने वाला,
अचानक बच्चों के आने वाले कल के लिए आज हालात से समझौता करने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

ऑफिस का बॉस, कईयों को आदेश देने वाला,
स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग में क्लास टीचर के सामने डरा सहमा सा,
कान में तेल डाला हो ऐसे उनके हर निर्देशों को ध्यान से सुनने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

खुद की पदोन्नति से भी ज्यादा बच्चे की स्कूल की सादी यूनिट टेस्ट की ज्यादा चिंता करने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

खुद के जन्मदिन का उत्साह से ज्यादा बच्चों के जन्मदिन की पार्टी की तैयारी में मग्न रहे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

पिता का सफर

हमेशा अच्छी अच्छी गाड़ियों में घुमाने वाला, जब बच्चे की सायकल की सीट पकड़ कर
उसके पीछे भागने में खुश होने लगे
तब …..
आदमी…..पिता बनता है ।

खुद ने देखी दुनिया, और खुद ने की अगणित भूलें,
पर बच्चे न करें, इसलिये उन्हें टोकने की शुरुआत करे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

बच्चों को कॉलेज में प्रवेश के लिए, किसी भी तरह पैसे ला कर
अथवा वर्चस्व वाले व्यक्ति के सामने दोनों हाथ जोड़े
तब …..
आदमी…..पिता बनता है ।

“आपका समय अलग था,
अब ज़माना बदल गया है,
आपको कुछ मालूम नहीं”
“This is Generation Gap”
ये शब्द खुद ने कभी बोला ये याद आये और मन ही मन बाबूजी को याद कर माफी माँगने लगे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

लड़का बाहर चला जाएगा, लड़की ससुराल, ये खबर होने के बावजूद,
उनके लिए सतत प्रयत्नशील रहे
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

बच्चों को बड़ा करते करते कब बुढ़ापा आ गया, इस पर ध्यान ही नहीं जाता,
और जब ध्यान आता है तब उसका कोइ अर्थ नहीं रहता;
तब …..
आदमी…..पुरुष से पिता बनता है ।

………….एक पिता की व्यथा………………….

माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो !
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो !
मैंने भी मन में जज़्बातों के तूफान समेटे हैं,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल में प्यार न हो ।

थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर में कोई मायूस न हो,
मैं सारी तकलीफें झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हें दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन में थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हों ।

है समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन में भाव छुपे हो लाखों, आँखो से न नीर बहे ।
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे ।

भूली नही मुझे है अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढ़ते हर पल में, जो यादो की मिश्री घोली,
कन्धों पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चों की अल्हड़ टोली!

पुरुष से पिता तक के सफर पर और पढ़ें – परिवार से बड़ा कोई धन नहीं

माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी तो, भाव नयन में थम जाना,
बढ़ते कदम लड़कपन को, कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख, मन का दूर वहम हो जाना।

कॉलेज के अंतिम उत्सव में मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादों से दिल बहलाता हूँ,
तारीखें ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना।

अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊँगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊँगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही है, फिर खुद को समझाऊँगा ।

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