साक्षी गोपाल के नाम से कैसे जाने गए भगवान श्रीकृष्ण, पढ़िए
एक बार दो ब्राह्मण वृंदावन की यात्रा पर निकले जिनमें से एक वृद्ध था और
दूसरा जवान था । यात्रा काफी लम्बी और कठिन थी जिस कारण उन दोनों यात्रियों को
यात्रा करने में कई कष्टों का सामना करना पड़ा उस समय रेलगाड़ियों की भी
सुविधा उपलब्ध नहीं थी । वृद्ध व्यक्ति ब्राह्मण युवक का अत्यंत कृतज्ञ था क्योंकि
उसने यात्रा के दौरान वृद्ध व्यक्ति की सहायता की थी ।
वृंदावन पहुंचकर उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा, ”हे युवक ! तुमने मेरी अत्यधिक सेवा की है.
मैं तुम्हारा अत्यंत कृतज्ञ हूं । मैं चाहता हूं कि तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हे कुछ पुरस्कार दूं”
उस ब्राह्मण युवक ने उससे कुछ भी लेने से इंकार कर दिया पर वृद्ध व्यक्ति हठ करने लगा.
फिर उस वृद्ध व्यक्ति ने अपनी जवान पुत्री का विवाह उस ब्राह्मण युवक से करने का वचन दिया ।
ब्राह्मण युवक ने वृद्ध व्यक्ति को समझाया कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप बहुत अमीर हैं और
मैं तो बहुत ही गरीब ब्राह्मण हूँ । यह वार्तालाप मंदिर में भगवान गोपाल कृष्ण के
श्रीविग्रह के समक्ष हो रहा था लेकिन वृद्ध व्यक्ति अपनी हठ पर अड़ा रहा और फिर
कुछ दिन तक वृंदावन रहने के बाद दोनों घर लौट आए ।
पिता का वचन
वृद्ध व्यक्ति ने सारी बातें घर पर आकर बताई कि उसने अपनी बेटी का विवाह
एक ब्राह्मण से तय कर दिया है पर पत्नी को यह सब मजूंर नहीं था । उस वृद्ध पुरुष की
पत्नी ने कहा, ” यदि आप मेरी पुत्री का विवाह उस युवक से करेंगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगी.”
कुछ समय व्यतीत होने के बाद ब्राह्मण युवक को यह चिंता थी कि
वृद्ध अपने वचन को पूरा करेगा या नहीं ।
ब्राह्मण युवक से रहा न गया और उसने वृद्ध पुरुष को उसका वचन याद करवाया.
वह वृद्ध पुरुष मौन रहा और उसे डर था कि अगर वह अपनी बेटी का विवाह इससे करवाता है तो
उसकी पत्नी अपनी जान दे देगी और वृद्ध पुरुष ने कोई उत्तर न दिया ।
तब ब्राह्मण युवक उसे उसका दिया हुआ वचन याद करवाने लगा और
तभी वृद्ध पुरुष के बेटे ने उस ब्राह्मण युवक को ये कहकर
घर से निकाल दिया कि तुम झूठ बोल रहे हो और तुम मेरे पिता को लूटने के लिए आए हो,
फिर ब्राह्मण युवक ने उसके पिता द्वारा दिया गया वचन याद करवाया ।
फिर ब्राह्मण युवक ने कहा कि यह सारे वचन तुम्हारे पिता जी ने श्रीविग्रह के सामने दिए थे
तब वृद्ध व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र जो भगवान को नहीं मानता था युवक को कहने लगा
अगर तुम कहते हो भगवान इस बात के साक्षी हैं तो यही सही. यदि भगवान प्रकट होकर
यह साक्षी दें कि मेरे पिता ने वचन दिया है तो तुम मेरी बहन के साथ विवाह कर सकते हो ।
श्रीकृष्ण साक्षी गोपाल के नाम से कैसे जाने गए
तब युवक ने कहा,” हां , मैं भगवान श्रीकृष्ण से कहूंगा कि वे साक्षी गोपाल के रूप में आएं । उसे
भगवान श्रीकृष्ण पर पूरा विश्वास था कि भगवान श्रीकृष्ण उसके लिए वृदांवन से जरूर आएंगे ।
फिर अचानक वृदांवन के मंदिर की मूर्ति से आवाज सुनाई दी कि मैं तुम्हारे साथ कैसे चल सकता हूं
मैं तो मात्र एक मूर्ति हूँ । तब उस युवक ने कहा कि “अगर मूर्ति बात कर सकती है तो
साथ भी चल सकती है” । तब भगवान श्रीकृष्ण ने युवक के समक्ष एक शर्त रख दी कि
तुम मुझे किसी भी दिशा में ले जाना मगर तुम पीछे पलटकर नहीं देखोगे तुम सिर्फ
मेरे नूपुरों की ध्वनि से यह जान सकोगे कि मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ ।
“युवक ने उनकी बात मान ली और तथा दोनों पुरी यानि उड़ीसा की ओर चल पड़े।
चलते-चलते जब वह अटक के नजदीकी गाँंव पुलअलसा के पास पहुंचे तो
रेतीला रास्ता आरम्भ हो गया। रेतीले रास्ते के कारण नूपुरों की आवाज बन्द हो गई।
भगवान श्रीकृष्ण का साक्षी गोपाल के रुप में आगमन
युवक ने धैर्य न धारण कर सकने के कारण पीछे मुड़ कर देख लिया और मूर्ति वहीं पर
स्थिर खड़ी हो गई । अब मूर्ति आगे नहीं चल सकती थी क्योंकि
युवक ने पीछे मुड़ कर देख लिया था । अपने साक्षी (भगवान) की स्थिरता को देखकर
वह लड़का परेशान हो गया पर भगवान जी ने उस लड़के को कहा कि
तुम परेशान न हो बल्कि जा कर उस ब्राह्मण और पंचायत को यहां ही ले आओ।
वह युवक दौड़कर नगर पहुंचा और सब लोगों को इक्ट्ठा करके कहने लगा कि “देखो भगवान श्रीकृष्ण
साक्षी रूप में आये हैं” । लोग स्तंभित थे कि इतनी बड़ी मूर्ति इतनी दूरी से चल कर आई है ।
पंचायत के पंचों के आने पर गोपाल जी ने वह सारी बात दोहरा दी जो धनवान ब्राह्मण ने
उस गरीब लड़के से उस की उपस्थिति में की थी।
भगवान गोपाल जी के साक्षी (गवाह) बनने से उस गरीब लड़के का विवाह उस ब्राह्मण की लड़की के साथ हो गया
तथा भगवान जी वहीं पर समा गए। कहा जाता है कि एक टूटा घुँघरू गोपाल जी के पांव में चुभने लगा था
तो उन्होंने उसे निकाल कर फेंक दिया और जहां वह घुँघरू गिरा वहीं सुंदर सरोवर बन गया
जिसे चंदन सरोवर नाम दिया गया। साक्षी गोपाल के श्रीविग्रह के सम्मान में पुलअलसा के लोगों ने वहां एक मूर्ति स्थापित कर
मंदिर बनवा दिया ।
जगन्नाथ पुरी में भगवान साक्षी गोपाल –
जगन्नाथ पुरी में भगवान श्री कृष्ण का एक मंदिर है जिसे साक्षी गोपाल के नाम से जाना जाता है।
इसके संबंध में कहा जाता है कि भक्त की गवाही देने के लिए भगवान गोपाल जी वृंदावन से उड़ीसा के
पुलअलसा आए थे। पुलअलसा में स्थित हुए गोपाल जी के विग्रह को कटक के राजा
पुरी ले आए और यही पर साक्षी गोपाल जी को स्थापित कर दिया।
लेकिन इसके बाद से ऐसा होने लगा कि जगन्नाथ जी को जाने वाला भोग
गोपाल जी पहले ही भोग लगा लेते थे। जगन्नाथ जी ने एक रात राजा को सपने में
यह बात बताई तो राजा ने साक्षी गोपाल जी को पुरी से 15 किलोमीटर दूर ले जाकर
एक मंदिर में स्थापित कर दिया। इसके बाद अजब घटना हुई।
पुरी से दूर जाने पर गोपाल जी राधा से भी दूर हो गए। राधा जी का मन भी
गोपाल जी के बिना नहीं लग रहा था। इसलिए साक्षी गोपाल मंदिर के पुजारी की कन्या के रुप में
राधा जी ने जन्म लिया। इस कन्या का नाम पुजारी जी ने लक्ष्मी रखा। जब यह कन्या
कुछ बड़ी हुई तो अजब सी लीलाएं होने लगी।
कभी गोपाल जी के मंदिर को सुबह खोलने पर लक्ष्मी के वस्त्र आभूषण मिलते तो
कभी लक्ष्मी के कमरे से गोपाल जी की मालाएं मिलती। यह बात जब कटक के राजा के पास पहुंची
तो पंडितों की सलाह पर गोपाल जी के पास राधा की मूर्ति स्थापित करने का विचार किया गया।
मूर्ति के स्थापित होते ही लक्ष्मी ने प्राण त्याग दिए और राधा की मूर्ति में लक्ष्मी की आत्मा समा गई।
लोगों ने देखा कि राधा की मूर्ति की सूरत बदल गई है वह बिल्कुल पुजारी जी की
कन्या लक्ष्मी जैसी दिख रही है।
इस मंदिर के दर्शन के बिना अधूरी है जगन्नाथ पुरी की यात्रा
साक्षी गोपाल मन्दिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 50 किलोमीटर तथा
जगन्नाथ पुरी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मन्दिर के बारे में
यह धारणा प्रचलित है कि जो श्रद्धालु पुरी में जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए आएगा
उस की यह यात्रा तब ही सम्पूर्ण होगी यदि वह इस (साक्षी गोपाल) मन्दिर के भी दर्शन करेगा।
श्रद्धालु जगन्नाथ जी के दर्शन करने के बाद इस मन्दिर में भी नतमस्तक होते हैं तथा
मन्दिर के नजदीक बनाए गए चंदन के सरोवर में स्नान करते हैं।
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