प्रेम पर सुविचार, प्रेम के अनमोल वचन, प्यार पर सुन्दर विचार
प्रेम की भावना एक बहुत ही पवित्र भावना होती है, जिसमें ‘मै’ से पहले किसी और व्यक्ति का ख्याल आता है।
यहाँ हम उसे खोने या पाने से ज्यादा उसकी खुशी और उसके दुःख के बारे में सोचते हैं । हम उसको आज़ाद कर देते हैं, अपनी खुशियाँ चुनने के लिए । हम सदैव उसके साथ रहते हैं, चाहे उसके पास रहें या न रहें।
प्रेम पर स्वामी विवेकानंद के विचार –
स्वामी विवेकानंद जी का कथन है –“प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है । प्रेम इसलिए विस्तार है, क्योंकि प्रेम में हमारे अलावा दूसरे भी शामिल होते हैं जबकि स्वार्थ केवल स्व तक ही सीमित होता है।
स्वार्थ तालाब के पानी का द्योतक है जिसमें पानी का प्रवाह न होने से वह पीने के लायक नहीं रहता, उसकी शुद्धता में संदेह होता है।
इसके विपरीत प्रेम की बहती नदिया लेने और देने वाले दोनों की प्यास बुझाती है।
प्रेम पर ओशो के विचार
प्रेम शब्द से न चिढ़ो। यह हो सकता है कि तुमने जो प्रेम समझा था वह प्रेम ही नहीं था। उससे ही तुम जले बैठे हो और यह भी मैं जानता हूँ कि दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीने लगता है।
तुम्हें प्रेम शब्द सुनकर पीड़ा उठ आती होगी, चोट लग जाती होगी। तुम्हारे घाव हरे हो जाते होंगे। फिर से तुम्हारी अपनी पुरानी यादें उभर आती होंगी।
लेकिन मैं उस प्रेम की बात नहीं कर रहा हूँ। उस प्रेम का तो तुम्हें अभी पता ही नहीं है, वह तो कभी असफल होता ही नहीं । उसमें अगर कोई जल जाए तो निखरकर कुंदन बन जाता है, शुद्ध स्वर्ण हो जाता है।
मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूँ उसमें जलकर कोई जलता नहीं और जीवंत हो जाता है। व्यर्थ जल जाता है, सार्थक निखर आता है।
प्रेम के विविध भाव
प्रेम के बहुत रूप हैं और हर रूप में यह कल्याण ही करता है व्यक्ति का, यदि इसके पथ से व्यक्ति विचलित न हो ।
माता- पिता तथा गुरुजनों का प्रेम, ममता तथा स्नेह कहलाता है जो हमें सदैव शिखर पर प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है ।
प्रेम यदि प्रेयसी या प्रिय से हो जाये तो उसे प्रीति कहते हैं।
जब ईश्वर से प्रेम होता है तो उसे भक्ति कहते हैं और
ईश्वर को जब भक्त से प्रेम होता है तो वत्सलता कहलाता है और प्रेम की भावना में वशीभूत होकर नंगे पैर दौड़ पड़ते हैं भगवान ।
जब समकक्षों के साथ प्रेम हो जाये तो मित्रता कहलाती है तथा यही प्रेम जब आपके अधीनस्थ आपसे करते हैं तो अनुशासन कहलाता है ।
प्रेम क्या है
प्रेम क्या है, अगर समझो तो भावना है,
इससे खेलो तो एक खेल है ।
अगर साँसों में हो तो श्वास है और दिल में हो तो विश्वास है,
अगर निभाओ तो पूरी जिंदगी है और बना लो तो पूरा संसार है ।
प्रेम तो वही है जो हृदय की अनंत गहराई से किया जाता है और जिसमें मैं नहीं हम की भावना हो।
प्रेम तो जिया जाता है, पाया नहीं जाता है ।
सिर्फ पाने के लिए प्रेम किया जाए वो व्यापार होता है ।
प्रेम, ईश्वर है, जब तक इसमें आसक्ति और स्वार्थ न मिलाया जावे । जब इसमें स्वार्थ मिलेगा तब प्रेम नहीं होगा ।
प्रेम की परिभाषा
कहाँ ढूँढते फिरते हो, प्रेम की परिभाषा ? इसकी कितनी सरल सी तो परिभाषा है ।
‘स्त्री’
कभी माँ के रूप में, कभी बहन तो कभी अर्धांगिनी तो कभी बेटी के रूप में ।
माफ़ी प्रेम की अर्धांगिनी है….इसके बिना प्रेम कभी प्रेम नहीं रहा,
हम जब प्रेम करना सीखते हैं तो माफ़ करना भी सीखते हैं…..”
प्रेम एक जुड़ाव है, कोई बंधन नहीं
क्योंकि बाँधने के लिए लाजिमी है गाँठ लगाना और
जहाँ गाँठ है वहाँ बंधन तो हो सकता है परंतु प्रेम नहीं ।
प्रेम पर सुविचार
प्रार्थना, प्रेम का ही एक रूप है,
जिसके पीछे सब हैं कतार में कोई शब्दों से व्यक्त करता है तो कोई मौन रहकर ।
जीवन का कोई भी संघर्ष प्रेम से भी जीता जा सकता है और क्रोध से भी जीता जा सकता है,
लेकिन प्रेम से मिलने वाली जीत स्थाई होती है, और क्रोध से मिलने वाली जीत,
एक नये संघर्ष से पहले का छोटा सा विराम होती हैै।
यह वो आहट है, जो बिना किसी पद़चाप के शामिल हो जाता है जिंदगी में, धड़कनों का अहसास बनकर ।
प्रेम, तब खुश होता है, जब वो कुछ दे पाता है
और अहंकार, तब खुश होता है, जब वो कुछ ले पाता है ।
मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला यदि दुनिया में कोई असली चुम्बक है, तो वह है
आपका प्रेम और आपका व्यवहार ।
प्रेम पुरुष को निःशब्द और स्त्री को चंचल बना देता है
पुरुष का मौन और स्त्री की चंचलता प्रेम का सूचक होते हैं ।
प्रेम विश्वास है, जब भी साथ होता है पूरा अस्तित्व प्रेममय हो जाता है ।
प्रेम पीपल के बीज समान है
जहाँ संभावना नहीं ,
वहाँ भी पनप जाता है ।
प्यार बंसी के बजने में हो जाता है,
धुन मीठी तो हो जाता है प्रेम,
विष के प्याले में भी अमृत के रुप मे दिखता है, प्रेम ।
प्रेम कोई शब्द नहीं,
जिसे लिख पाओगे
प्रेम कोई अर्थ नहीं,
जिसे समझ पाओगे
ये तो वीणा का सफर है
बह गए तो बस बहते चले जाओगे ।
प्रेम पर सुविचार
किसी को प्रेम देना सबसे बड़ा उपहार है और किसी का प्रेम पाना सबसे बड़ा सम्मान है।
प्रेम चाहिए तो समर्पण खर्च करना होगा;
विश्वास चाहिए तो निष्ठा खर्च करना होगी;
साथ चाहिए तो समय खर्च करना होगा;
किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं;
मुफ्त तो हवा नहीं मिलती;
एक साँस भी तब आती है;
जब एक साँस छोड़ी जाती है ।
आकर्षण की अवधि होती है,
प्रेम की कोई अवधि नहीं होती है ।
शुद्ध का अर्थ स्वभाव में होना
अशुद्ध का अर्थ प्रभाव में होना ।
प्रेम बचपन में मुफ्त मिलता है
जवानी में कमाना पड़ता है
और
बुढ़ापे में मांगना पड़ता है।
प्रेम की भाषा बोलिए,
इसे बहरे भी सुन सकते हैं और
गूंगे भी समझ सकते हैं ।
किसी के स्पर्श का एहसास जब मन को भिगोने लगे
तो समझ लीजिए की मोहब्बत आपकी रूह तक बस चुकी है ।
प्यार और ताकत में फर्क :
ये कभी मत सोचो “हम से जो टकरायेगा वो चूर चूर हो जायेगा”;
बल्कि यह सोचो “हम से जो टकरायेगा वो हमारा हो कर जायेगा”;
हमेशा प्रेम प्रदर्शित करो न कि ताकत,
क्योंकि समय आने पर वो सामने वाले को अपने आप ही दिख जायेगी ।
प्रेम न दावा करता है, न क्रोध करता है,
न बदला लेता है, वह सदा देता है और तकलीफ उठाता है ।
उम्र में भले ही कोई छोटा हो लेकिन वास्तव में बड़ा तो वही है,
जिसके ह्रदय में प्रेम की रसधार हो स्नेह और सम्मान की भावना हो ।
वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है, उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता,
उसके एक भी संकट नहीं हैं ।
– भगवान बुद्ध
शब्द जब मिलते नहीं मन के
प्रेम तब इंगित दिखाता है
बोलने में लाज जब लगती
प्रेम तब लिखना सिखाता है ।
– रामधारी सिंह दिनकर
प्रेम की धारा बहती है, जिस दिल में,
चर्चा होती है, उसकी हर महफिल में ।
प्रेम प्रकृति है, यह व्यवहार नहीं कि मैं करूं तो तुम भी करो ।
प्रेम पर सुविचार और पढ़ें –
Good
धन्यवाद