नम्रता पर सुविचार, विनम्रता पर अनमोल वचन
लोगों से मिलते वक्त इतना मत झुको, कि
उठते वक्त सहारा लेना पड़े।
झुकना बहुत अच्छी बात है
जो नम्रता की पहचान है पर
आत्म सम्मान खोकर झुकना
खुद को खोने के समान है ।
पके हुए फल की तीन पहचान होती है।
एक तो वह नर्म हो जाता है,
दूसरा वह मीठा हो जाता है और
तीसरा उसका रंग बदल जाता है।
इसी तरह से एक परिपक्व व्यक्ति की भी
तीन पहचान होती है
पहली उसमें नम्रता होती है,
दूसरा उसकी वाणी में मिठास होती है, और
तीसरा उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का रंग होता है।
नम्रता की नरम मिट्टी में ही
सम्मान का अंकुर फूटता है ।
कम खाने से इन्सान, बीमार नही होता ।
गम खाने से कभी, तिरस्कार नही होता ।
आदमी का गौरव लघुता से बढ़ता है,
नम जाने से द्वन्द का विस्तार नही होता ।
ज्ञान के बाद यदि अहंकार का जन्म होता है, तो वो ज्ञान जहर है।
और ज्ञान के बाद नम्रता का जन्म होता है, तो यही ज्ञान अमृत होता है ।
हम झुकते हैं,
क्योंकि हमें रिश्ते निभाने का शौक है
वरना गलत तो हम कल भी नहीं थे
और आज भी नहीं हैं।
विनम्रता पर अनमोल वचन, नम्रता पर सुविचार
श्रद्धा ज्ञान देती है,
नम्रता मान देती है और
योग्यता स्थान देती है।
पर तीनों मिल जायें तो,
व्यक्ति को हर जगह सम्मान देती है।
रिश्ते मोतियों की तरह होते होते हैं
कोई गिर भी जाये तो झुक कर उठा लेना चाहिए।
दरिया ने झरने से पूछा
तुझे समन्दर नहीं बनना है क्या ?
झरने ने बडी नम्रता से कहा
बड़ा बनकर खारा हो जाने से अच्छा है
कि मैं छोटा रह कर मीठा ही रहूँ ।
कद बढ़ा नहीं करते ,ऐड़ियाँ उठाने से,
ऊँचाईयाँ तो केवल मिलती हैं, सर झुकाने से।
दिल भी झुकना चाहिये सजदे में सर के साथ,
दिल कहीं, सर कहीं, ये बंदग़ी अच्छी नहीं ।
सारा जहाँ उसी का है जो मुस्कुराना जानता है,
रौशनी भी उसी की है जो शमा जलाना जानता है
हर जगह मंदिर हैं लेकिन भगवान तो उसी का है
जो सर झुकाना जानता है।
आंधियाँ हसरत से अपना सिर पटकती रह गयी,
बच गए वो पेड़ जिनमे हुनर झुकने का था ।