बचपन स्टेटस ( Bachpan status) शायरी
बचपन भी कमाल का था
खेलते-खेलते चाहे छत पर सोयें या ज़मीन पर
आँख मगर बिस्तर पर ही खुलती थी ।
मिट्टी भी जमा की,
खिलौने बना कर भी देखे
ज़िन्दगी न मुस्कुराई
फिर बचपन की तरह.
बचपन में सबसे
अधिक बार पूछा गया सवाल –
बड़े हो कर क्या बनना है ?
जवाब अब मिला है –
फिर से बच्चा बनना है ।
उड़ने दो परिंदों को
अभी शोख़ हवा में,
फिर लौट के बचपन के
ज़माने नहीं आते।
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता ।
वो बचपन की नींद अब ख्वाब हो गई,
क्या उमर थी कि,
शाम हुई और सो गये।
रोने की वजह भी न थी,
न हँसने का बहाना था;
क्यों हो गए हम इतने बडे़,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।
लौटा देती ज़िन्दगी एक दिन नाराज़ होकर,
काश मेरा बचपन भी कोई अवार्ड होता।
जब
नासमझ थे तो
ख्वाब हमारी
मुट्ठी में बंद थे
समझ आयी तो
ख्वाबों ने हमें
मुट्ठी में बंद कर लिया।
बचपन के दिन
कितने खूबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलियॉं जुड़ने से
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी ।
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया ।
वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गई
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे ।
टूटा हुआ विश्वास और छूटा हुआ बचपन
जिंदगी में कभी वापस नहीं मिलता ।
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई ।
बचपन की वो बीमारी
भी अच्छी लगती थी, जिसमें
स्कूल
से छुट्टी मिल जाती थी ।
काश मैं लौट जाऊँ
बचपन की
उसी वादियों में ऐ जिन्दगी
नई जरुरत थी,
न कोई जरूरी था ।
बचपन पर कविता
किसी नन्हे बच्चे की मुस्कान देख कर
किसी ने क्या खूब लिखा है
दौड़ने दो खुले मैदानों में
इन नन्हें कदमों को साहब
जिंदगी बहुत तेज भगाती है
बचपन गुजर जाने के बाद ।
बचपन के दुख भी कितने अच्छे थे
तब तो सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
वो खुशियाँ भी न जाने कैसी खुशियाँ थी
तितली पकड़ के उछला करते थे
पाँव मार के पानी में खुद को भिगोया करते थे
अब तो एक आँसू भी रुसवा कर जाता है
बचपन में तो दिल खोल के रोया करते थे ।
एक बचपन का जमाना था,
जिसमे खुशियों का खजाना था
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दीवाना था ।
खबर ना थी कुछ सुबह की
ना शाम का ठिकाना था,
थककर आना स्कूल से, पर खेलने भी जाना था
माँ की कहानी थी, परियों का फसाना था
बारिश में कागज की नाव थी, हर मौसम सुहाना था
हर खेल में साथी थे, हर रिश्ता निभाना था
गम की जुबान ना होती थी, ना जख्मों का पैमाना था
रोने की वजह ना थी, ना हँसने का बहाना था
क्यों हो गए हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था ।
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