हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये
ज़िन्दगी भोर है सूरज-से निकलते रहिये ।
एक ही ठाँव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये ।
आपको ऊँचे जो उठना है तो आँसू की तरह
दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये ।
शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है
आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये ।
प्यार से अच्छा नहीं कोई भी सांचा ऐ ‘कुँअर’
मोम बनके इसी सांचे में पिघलते रहिये ।
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ज़िन्दगी (Zindagi) पर चंद लाइन और पढ़िये कुंअर बेचैन की कलम से –
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सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर ।
दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर ।
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर ।
बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर ।
बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर ।
शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर ।
– कुंअर बेचैन
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समर में घाव खाता है
उसी का मान होता है,
छिपा उस वेदना में
अमर बलिदान होता है,
सृजन में चोट खाता है छेनी और हथौड़ी का,
वही पाषाण मंदिर में कहीं भगवान होता है ।
यह अरण्य झुरमुट जो काटे
अपनी राह बना ले,
कृत दास यह नहीं किसी का
जो चाहे अपना ले
जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर जो
इससे डरते हैं,
यह उनका है, जो चरण रोप
निर्भय होकर चलते हैं । – कुँअर बेचैन
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलों तक ।
प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों । – कुँअर बेचैन
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हम बहुत रोए किसी त्यौहार से रहकर अलग,
जी सका है कौन अपने प्यार से रहकर अलग ।
चाहे कोई हो उसे कुछ तो सहारा चाहिए,
सज सकी तस्वीर कब दीवार से रहकर अलग । – कुँअर बेचैन
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वो पथ क्या पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ में बिखरें शूल न हों
नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
जब धाराएँ प्रतिकूल न हों ।
बुझने लगी हो आँखे तेरी,
चाहे थमती हो रफ्तार
उखड़ रही हो सांसे तेरी,
दिल करता हो चीत्कार
दोष विधाता को ना देना,
मन मे रखना तू ये आस ।
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