अभिमान अहंकार पर सुविचार – अभिमान घमंड और स्वाभिमान पर अनमोल वचन शायरी
अभिमान को आने मत दो;
और स्वाभिमान को जाने मत दो;
अभिमान तुम्हें उठने नहीं देगा;
और स्वाभिमान गिरने नहीं देगा;
जिसकी नीति अच्छी होगी;
उसकी उन्नति हमेशा होगी
मैं श्रेष्ठ हूँ;
यह आत्मविश्वास है;
लेकिन मैं ही श्रेष्ठ हूँ;
यह अहंकार है ।
अभिमान
तब आता है
जब हमें लगता है कि
हमने कुछ किया है
सम्मान तब मिलता है
जब दुनिया को लगता है कि
आपने कुछ किया है ।
घमंड पर सुविचार
पूरी दुनिया जीत सकते हैं
संस्कार से
और जीता हुआ भी हार सकते हैं
अहंकार से..।
अगर आप;
किसी को छोटा देख रहे हो तो;
आप उसे या तो दूर से देख रहे हो;
या अपने गुरूर से देख रहे हो ।
रावण ने कैलाश पर्वत उठा लिया था,
वो केवल शिव की भक्ति के कारण।
बाकी अहंकार से तो वो
अंगद का पांव भी नहीं उठवा पाया था ।
अहंकार में तीनों गए, धन, वैभव और वंश
यकीन न आए तो देख लो, रावण, कौरव और कंस ।
जिंदगी में कभी भी अपने किसी हुनर पर
घमंड मत करना, क्योंकि पत्थर जब पानी में गिरता है तो
अपने ही वजन से डूब जाता है।
जीत किसके लिए,
हार किसके लिए
ज़िंदगी भर ये तकरार किसके लिए
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’
एक दिन
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए ।
जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,
एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।
और….
जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।
जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।
और….
जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।
चलने वाले पैरों में कितना फर्क होता है,
एक आगे तो एक पीछे लेकिन
न तो आगे वाले को अभिमान होता है और
न ही पीछे वाले का अपमान क्योंकि
उन्हें पता होता है कि कुछ ही समय में यह स्थिति
बदलने वाली है, इसी को जीवन कहते हैं ।
इतना छोटा कद रखिए कि
सभी आपके साथ बैठ सकें।
और इतना बड़ा मन रखिए कि
जब आप खड़े हो जाऐं,
तो कोई बैठा न रह सके।
अभिमान अहंकार पर सुविचार और पढ़ें – नजरिया बदलें जीवन बदलें
देने के लिए दान,
लेने के लिए ज्ञान, और
त्यागने के लिए अभिमान सर्वश्रेष्ठ है।
अँधकार, प्रकाश का अभाव है, जबकि
अहंकार, जागरुकता का अभाव है ।
आंखों में गर हो गुरूर
तो इंसान को इंसान नहीं दिखता
जैसे छत पर चढ़ जाओ तो
अपना ही मकान नहीं दिखता ।
मत करना कभी भी गुरूर
अपने आप पर ‘ऐ इंसान’
भगवान ने तेरे और मेरे जैसे
कितनों को मिट्टी से बना कर,
मिट्टी में मिला दिए ।
चलने वाले दोनों पैरों में कितना फर्क है-
एक आगे तो एक पीछे पर
न तो आगे वाले को अभिमान है, और
न पीछे वाले को अपमान
क्योंकि उन्हें पता होता है कि
पल भर में ये बदलने वाला है ।
जीवन के दिन चार है, मत करिए अभिमान ।
हर इक दिन को मानिए, जीवन में वरदान ।
जो ज्ञानी होता है
उसे समझाया जा सकता है,
जो अज्ञानी होता है उसे भी
समझाया जा सकता है।
परन्तु जो अभिमानी होता है
उसे कोई नहीं समझा सकता।
उसे केवल वक्त ही समझा सकता है।
Excellent post
So true. Beautiful poem.