माँ बगलामुखी की उपासना
वैसाख माह को पवित्र और शुद्ध मास माना जाता है। इस माह में सारे शुभ काम किये जाते हैं।
यह इस मास की विशेषता है कि शुक्ल पक्ष के द्वितीया को परशुराम जयंती, तृतीया को
अक्षय तृतीया, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। चतुर्थी को गणेश चतुर्थी,
पंचमी को आदि शंकराचार्य जयंती, षष्ठी को रामानुचार्य जयंती, सप्तमी को गंगा सप्तमी,
अष्टमी को बगलामुखी जयंती, नवमी को जानकी जयंती, त्रयोदशी को नरसिंह जयंती और
पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती होती है।
वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है
जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है ।
इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना की जाती है साधक को माता बगलामुखी की
निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए । बगलामुखी जयंती पर्व तथा महोत्सव के दिन
शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और
रातभर भगवती जागरण होता है ।
कौन है बगलामुखी माँ –
मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में
माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है।
इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं।
इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से
विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।
माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को
दूर करके उनके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं । माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है
इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग
सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है
अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए ।
माँ बगलामुखी की उपासना के लाभ
देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं.
संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि,
वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है.
इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की
बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है,
जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही
इन्हें यह नाम प्राप्त है.
बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो
शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता,
वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं.
देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से
बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है ।
बगलामुखी कथा । Baglamukhi Story
देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार
सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ,
जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और
अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया.
यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर
भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब
भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को
रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने
हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके
महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और
सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ.
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई,
त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को
इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी
कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र
कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं,
गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
मां बगलामुखी पूजन | Bagalamukhi puja
माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर,
पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ
बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके
पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का
चित्र स्थापित करें.
इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद
हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें.
इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है मंत्र- सिद्ध करने की साधना में
माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो
ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.
माँ बगलामुखी मंत्र | Bagalamukhi Mantra
श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
मंत्र | Mantra
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है.
यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो
निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का
पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली
सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है ।