ज़िंदगी के तजुर्बे शायरी, जीवन के कड़वे सच, ज़िन्दगी सैड शायरी
छोड़ो बिखरने देते हैं
जिंदगी को,
आखिर समेटने की भी
एक हद होती है ।
फिल्म ही तो है ज़िंदगी
हर कुछ देर बाद
सीन बदल जाता है।
थोड़ा सा रफू करके देखिए ना,
फिर से नई सी लगेगी ।
ज़िन्दगी ही तो है ।
चुभ जाती है बात कभी,
कभी लहजे मार जाते हैं…
ये जिंदगी है साहेब,
यहाँ गैरो से ज्यादा हम अपनों से हार जाते हैं ।
जिन्दगी आज कल गुजर रही है
इम्तिहानों के दौर से
एक जख्म भरता नहीं दूसरा आने की जिद करता है ।
कितने इम्तिहान लेगी ए जिंदगी,
सिर्फ तजुर्बों का क्या करूं मैं,
बहुत जी लिये परायों के लिए,
कोई तो हो अपना जिसके लिए मरूं मैं।
नफरतों के शहर में,
चालाकियों के डेरे हैं,
यहां वो लोग रहते हैं जो
तेरे मुँह पर तेरे हैं, मेरे मुँह पर मेरे हैं।
सफेदी से बालों की
अंदाजा न लगा उम्र का
ये तो तोहफे में मिले हैं
तजुर्बे जिंदगी के ।
शमशानो में तजुर्बों के ढ़ेर पड़े है,
सबके तजुर्बे यही धरे रह गए।
घर आलीशान बनाया था जिन्होंने,
वो चले गए दीवारों पर चेहरे रह गए।
तजुर्बे यूँ ही नहीं मिलते जहाँ में ‘जनाब’
इक़ उम्र गवानी पड़ती हैं
आ जाए अपनों के चेहरे पे रौनक
ख़ुद की हस्ती मिटानी पड़ती है ।
ज़िंदगी के तजुर्बे शायरी, सुविचार
थोडा़ सा और बिखर जाऊँ,
हमने यही ठानी है,
ऐ जिन्दगी ! थोडा़ सा रूक,
हमने अभी हार कहाँ मानी है ।
चूहा अगर पत्थर का हो तो सब उसे पूजते हैं
मगर जिन्दा हो तो मारे बिना चैन नहीं लेते हैं ।
साँप अगर पत्थर का हो तो सब उसे पूजते हैं
मगर जिन्दा हो तो उसी वक़्त मार देते हैं ।
माँ बाप अगर “तस्वीरों” में हो तो सब पूजते हैं
मगर जिन्दा है तो कीमत नहीं समझते ।
बस यही समझ नहीं आता के ज़िन्दगी से इतनी नफरत क्यों
और
पत्थरों से इतनी मोहब्बत क्यों
जिस तरह लोग मुर्दे इंसान को कंधा देना पुण्य समझते हैं
काश” इस तरह’ ज़िन्दा” इंसानव को सहारा देंना पुण्य समझने लगे तो
ज़िन्दगी आसान हो जायेगी ।
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